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Contributed by rkmp.drr on Sat, 2011-09-03 15:30
• ऐसी फ़सल जो सामान्यतः खर-पतवारनाशियों के प्रति संवेदनशील होती हैं, उन्हें जैव-तकनीकी विधियों द्वारा खर-पतवारनाशी के प्रति प्रतिरोधी बनाया जा सकता है। कई प्रकार के खर-पतवारनाशियों के लिए प्रतिरोधन जीन को मक्के, कपास, कैनोला तथा सोयाबीन के जीनोम में समावेशित किया गया है।
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चावल में खर-पतवार प्रबंधन, DRR ट्रैनिंग मैनुअल
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• एक ही खर-पतवारनाशी के लगातार इस्तेमाल से खर-पतवार उस खर-पतवारनाशी के प्रति सहनशील हो जाते हैं या उन्हीं के बीच ऐसी प्रजाति विकसित हो जाती है, जो उस खर-पतवारनाशी के प्रति प्रतिरोधी होते हैं। कोरिया में वार्षिक खर-पतवार जैसे Echinochloa crusgalli तथाMonochoria vaginalis, एवं सदाबहार जैसे Sagittaria trifolia, Sagittaria pygmaea, Eleocharis kuroguwai, Cyperus serotinus एवं Potamogeton distinctus, चावल के खेतों में उगने वाले सर्वाधिक महत्वपूर्ण खर-पतवार प्रजातियां मानी जाती हैं।
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• समेकित चावल तथा बत्तख खेती का प्रचलन वियतनाम में काफी अधिक हैम जहां बत्तख पालन को शामिल करने से मोनो-कोट खर-पतवार जैसे Echinochloa crusgalli तथा Monochoria vaginalis (फ्युरुनो, 2001) में काफी कमी आती है। चावल-मूंग बीन फ़सल पर अन्नामलाई विश्वविद्यालय में किए 3 वर्षों के अध्ययन में यह बात सामने आई कि मूंग बीन की रिले क्रॉप के इस्तेमाल से समस्या उत्पन्न करने वाले खर-पतवार Cyperus difformis (काथिरेसन, 2002) में कमी आयी।
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• 90 के दशक में चावल के ऐलीलोपैथिक अनुसंधान खर-पतवार को दबाने वाली चावल किस्मों की जांच पर आधारित था साथ ही इस दौर में रासायनिक यौगिकों की पहचान पर भी ध्यान दिया गया। चावल में 15 देशों से 60 कृषि किस्में हैं, जिनके ज्ञात ऐली ऐलेलोपैथिक प्रभाव हैं तथा इनमें से कुछ किस्में एक निश्चित त्रिज्या के भीतर लगभग 90% की दर पर खर-पतवारों का नियंत्रण करती हैं।
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• जड़ निःश्रवण द्वारा या पौधे के सड़े-गले पदार्थों से पर्यावरण में विषैले पदार्थों की मुक्ती के जरिए खर-पतवारों की ऐलीलोपैथिक क्षमता का प्रदर्शन लगभग 90 प्रजातियों में किया गया (पत्नम 1986)।
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• निक्षालन, अवशिष्ट समावेशन तथा अपघटन, वाष्पीकरण, जड़ निःश्रवण इत्यादि द्वारा ऐलेलोपैथिक यौगिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राइजोइजोस्फेयर में मुक्त होते हैं। अनुसंधान से पता चलता है कि जब एक पौधे द्वारा निर्मित ऐलेलोकेमिकल पर्यावरण में मुक्त होता है तब जैव-रसायन की अंतःक्रिया होती है, तथा दूसरे पौधे की वृद्धि तथा विकास प्रभावित होता है।
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पौधे पर्यावरण में कई तरीके से रसायन मुक्त करते हैं, जो एडाफिक तथा जलवायविक कारकों पर निर्भर करता है, जो पड़ोसी प्रजातियों की वृद्धि को प्रभावित करता है।
इस परिघटना का इस्तेमाल निम्नांकित के जरिए पर्यावरण हितैषी (अरासायनिक) खर-पतवार प्रबंधन के लिए किया जा सकता है:
(i) ऐलीलोपैथिक कवर क्रॉप
(ii) प्राकृतिक खर-पतवारनाशी के रूप में ऐलीलोकेमिकल
(iii) ऐलीलोपैथिक फ़सल प्रजातियां
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1. खर-पतवार नियंत्रण के उदासीन या जैविक एजेंट वे जैविक मूल के एजेंट होते हैं, जो वांछित पौधों को बिना प्रभावित किए खर-पतवारों को नष्ट करते हैं अथवा उन्हें बाधित करते हैं। ऐसे एजेंटों में शामिल हैं- कीट, जानवर, मछलियां (जैसे चाइनीज कार्प), घोंघे, पक्षी (जैसे बत्तख), रोगाणु (कवक, बैक्टीरिया, वायरस, नेमाटोड इत्यादि), उनके विषैले उत्पाद तथा पौधे (परपोषी पौधे, प्रतियोगी पौधे) या उनके उत्पाद।
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खर-पतवार नाशी के अनुप्रयोग का अर्थ होता है सही मात्रा में खर-पतवारनाशी का एक समान रूप से वितरण करना।
i) दाबयुक्त अनुप्रयोग – हाइड्रॉलिक अनुप्रयोग (नैपसैक स्प्रेयर)
ii) गैर-दाबयुक्त अनुप्रयोग – ग्रेनुलर ऐप्लिकेटर, वाटर गन, डाइरेक्ट कॉन्टेक्ट ऐप्लिकेटर, कंट्रोल्ड-ड्रॉप्लेट ऐप्लिकेशन
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1. ऐसे क्षेत्रों में जहां वर्षा का अनुमान लगाना कठिन हो या खर-पतवारनाशी वाष्पशील हो अथव तीव्र प्रकाश-अपघटन होने वाला हो वहां पौध-पूर्व के इस्तेमाल में रोपण से पहले मौजूदा वनस्पतियों पर पत्र छिड़काव किया जाता है या उन्हें मिट्टी में डाला जाता है।
2. पश्च-पौध इस्तेमाल में a) रोपण के बाद मिट्टी में तथा फ़सल अथवा खर-पतवार के उगने से पहले (उदय पूर्व) डाला जाता है या b) खर-पतवार या फ़सल के पौध में डाला जाता है, जो पत्र छिड़काव द्वारा या जल में मिलाकर (उदय पश्चात) डाला जाता है।
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1. सुबह या शाम के समय छिड़काव करना, जब हवा का प्रवाह मंद रहता है, इससे संवेदनशील फ़सलों पर रसायन के कणों के पहुंच की संभावना कम रहेगी।
2. ऑपरेट करने के लिए केवल नोजल के लिए आवश्यक न्यूनतम दाब का इस्तेमाल करें।
3. अधिक बड़े क्षेत्र में स्प्रे करने के लिए बड़े नोजल का इस्तेमाल करें, जिससे बड़े आकार के जल कण मिलेंगे।
4. स्प्रेयर के नोजल को लक्ष्य के पास रखें।
5. यदि पास की फ़सल संवेदनशील हो तो चावल की फ़सल का 10 चौड़ी पट्टी को छिड़काव तहित रखना चाहिए।
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• खर-पतवारनाशियों का बहाव उस स्थिति में उत्पन्न होता है, जब स्प्रे के नन्हे कण लक्षित क्षेत्र से हवा द्वारा दूर प्रवाहित हो जाते हैं या किसी वाष्पशील खर-पतवारनाशियों से जब 2,4-D (वृद्धि नियंत्रण खर-पतवार नाशी) इत्यादि के छिड़काव के दौरान या उसके बाद वाष्प उड़कर दूर चला जाता है। ऐसी स्थिति में टमाटर, पुदीना, कपास, फल जैसे पौधों को नुकसान पहुंचता है।
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1. मृदा एक बफर का कार्य करती है जो अधिकतर खर-पतवार नाशियों के सातत्य तथा उनकी नियति का संचालन करती है।
2. खर-पतवार नाशियों में अवशिष्टों की समस्या कीटनाशियों की तुलना में कम होती है।
3. रोपण या फ़सल की आरंभिक वृद्धि अवस्था के दौरान खर-पतवार नाशी का इस्तेमाल करने पर पौधे तथा पर्यावरण में रसायनों के निम्नीकरण के लिए अधिक समय मिलता है, और कटाई के समय अवशिष्ट पदार्थों की मात्रा काफी कम रहती है।
4. उष्ण-कटिबंधीय जलवायु में रसायनों का तीव्र निम्नीकरण होता है।
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1. खर-पतवारनाशी की मात्रा तथा उनका विकास।
2. खर-पतवारनाशी के नियंत्रण की सलाह।
3. उपलब्ध नियंत्रण उपाय।
4. खर-पतवारनाशी के इस्तेमाल का सही समय।
5. स्प्रे करने का अनुभव।
6. खर-पतवारनाशी की सुरक्षा का संभावित लागत लाभ।
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व्यावसायिक ठोस नुस्खे (WP, WSP, दाने) –सांद्रता सक्रिय घटक तत्त्वों के भार तथा व्यावसायिक ठोस खर-पतवार नाशी के भार का अनुपात (भार/भार) की प्रतिशतता होती है।
व्यावसायिक तरल नुस्खे (EC- सांद्रता को सक्रिय घटक तत्त्वों तथा व्यावसायिक एमल्सीकरण योग्य सांद्र खर-पतवार नाशी के अनुपात (भार/आयतन) के रूप में व्यक्त किया जाता है। विभिन्न खर-पतवार नाशी फॉर्मुलेशन नीचे दिए जा रहे हैं:
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खर-पतवार के वाहक: एक-समान प्रसार के लिए ये खर-पतवार नाशी में मौजूद कुछ अक्रिय पदार्थ होते हैं, जैसे रेत, जल, सूखी मिट्टी, कीचड़ इत्यादि
घोल के छिड़काव के लिए जल की आवश्यकता: किसी बड़े क्षेत्र में एक-समान अनुप्रयोग के लिए खर-पतवार नाशी को आवश्यक वाहकों की उचित मात्रा में मिलाते हैं। जल की प्रयुक्त मात्रा खर-पतवार नाशी की प्रभावशीलता को प्रभावित करती है, तथा इस्तेमाल करने में आसान हो जाता है।
एक निश्चित क्षेत्र में स्प्रे करने के लिए आवश्यक जल की मात्रा =
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खर-पतवार नाशी का इस्तेमाल कीटनाशी तथा कवकनाशियों की तरह नहीं करना चाहिए। खर-पतवार नाशियों के छिड़काव के लिए विशेष नोजलों का इस्तेमाल किया जाता है।
• फ्लैट फैन नोजल: छिड़काव के लिए ये शुंडाकार सिरा बनाते हैं, और जब पत्र भेदन तथा कवरेज की आवश्यकता नहीं होती है, तब इस्तेमाल किए जाते हैं। ऑपरेटिंग दाब निम्न होनी चाहिए, ताकि मध्यम से मोटी बूंदें निकल सकें।
• फ्लड जेट नोजल: तरलों तथा मिश्रित खर-पतवार नाशियों के लिए उपयोगी। ये व्यापक कोण विन्यास तथा इनका वितरण विन्यास एक समान नहीं होता। ये बहाव कम करने की स्थिति में कम दाब में प्रभावी होते हैं।
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Contributed by rkmp.drr on Sat, 2011-09-03 12:17
1. ऐनिलिड्स, उदाहरण: बुटाच्लर, प्रेटिलैच्लर, प्रोपेनिल
2. बाइपाइरिडाइलिंस, उदाहरण: पाराकेट
3. डाइनाइट्रो ऐनिलिन्स, उदाहरण: ब्युट्रालिन, पेंडिमेथालिन
4. ऑर्गेनोस्फोरस यौगिक, उदाहरण, ग्लाइफोसेट
5. फेनॉक्सीएसीटिक अम्ल, उदाहरण 2,4,D, फेनोप्रोप, MCPA, 2.4.5.T
6. थायोकार्बामेट्स, उदाहरण- मोलिवेट, थायोबेन्कार्ब
7. ट्रायजिम्स, उदाहरण: साइमेट्रिन, डायमेथेमीट्रिन
8. सल्फोनील्युरीयाज, उदाहरण- बेन्सल्फ्युरॉन
9. पॉलीसाइक्लिक अल्कैल्नोइक अम्ल, उदाहरण: फेनोक्सेप्रोप
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Contributed by rkmp.drr on Sat, 2011-09-03 12:14
• सभी विधियों में रासायनिक विधि प्रभावी होती है तथा खर-पतवार नाशी के सस्ते, भरोसेमंद होने के कारण इससे कृषि विज्ञान में क्रांतिकारी बदलाव आया है। वर्तमान में खर-पतवार नाशी कृषि में प्रयुक्त उत्पादन का दो-तिहाई हिस्सा निर्मित करता है।
• अमेरिका,जर्मनी, फ्रांस तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में दुनिया भर में कीटनाशियों की बिक्री का 50 से 70% हिस्सा बेचा जाता है। भारत में खर-पतवार नाशकों का इस्तेमाल कुल कीटनाशकों का केवल 15 से 25% होता है और मुख्यतः यह सिंचित गेहूं, धान, सोयाबीन, सब्जियां, चाय, कपास, मक्का, ज्वार तथा गन्ना के लिए प्रयुक्त होता है।
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