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Rice Soils Rice Soils
Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 12:15
कुछ ऐसे अहम प्रबंधन कौशल, जो मृदा स्वास्थ्य को टिकाऊ बनाते हैं, निम्नांकित हैं:
1. स्थान विशेष के आधार पर संतुलित रूप से उर्वरक का प्रयोग करना, ताकि नाइट्रोजन उर्वरक के विपरीत प्रभावों से बचा जा सके।
2. मांग के आधार पर अजैविक/जैविक पोषण प्रबंधन को व्यवहार में लाना, जिनमें मौसम से पहले तथा उसके बाद हरे लेग्यूम/हरे खाद का उपयोग करना।
3. चावल-चावल की बजाए चावल-गैर-चावल फ़सल का उपयोग करना, ताकि सही वातन हो सके और मृदा फेनॉल से भरपूर जैविक पदार्थ का अनावश्यक निर्माण से बचा जा सके।
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DRR टेक्निकल बुलेटिन नं. 11, 2004-2005, एम. नारायण रेड्डी, आर. महेन्दर कुमार तथा बी. मिश्रा, चावल आधारित फ़सल प्रणाली हेतु स्थल-विशिष्ट समेकित पोषण प्रबंधन
Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 12:13
1. पूर्व चेतावनी वाले मृदा स्वास्थ्य संकेतकों की कमी।
2. मृदा स्वास्थ्य के भौतिक तथा जैविक आयामों के निर्धारण के लिए सरल तथा सटीक प्रोटोकॉल तथा उपकरणों की कमी।
3. मृदा स्वास्थ्य के त्रिविम तथा सामयिक गुण की भिन्नता इसके मापन में कठिनाई पैदा करती है।
4. किसानों की भाषा में मृदा स्वास्थ्य के लिए फ्रेम वर्क की कमी, जैसे कई सारे मृदा मापन की जगह पर कोई एकल उपयोगी इंडेक्स की कमी है।
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1. मृदा स्वास्थ्य की वास्तविक समय वाली निगरानी संभव नहीं,
पर उपयुक्त समयांतरालों में संकेतकों के मापन के जरिए इसकी निगरानी की जा सकती है, जो उनकी संवेदनशीलता पर निर्भर करती है और इसके लिए मानक विधियों का प्रयोग किया जाता है, जिनमें मृदा स्वास्थ्य में होने वाले परिवर्तनों को परखा जाता है, ताकि रक्षात्मक कदम उठाए जा सकें।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 12:07
1. मृदा स्वास्थ्य के आसानी से मापे जाने हेतु संकेतक अहम होते हैं,
जिसके जरिए हम मृदा की गुणवता की निगरानी/मूल्यांकन करते हैं।
2. संकेतकों को गुणात्मक (बोध, गंध, रूप-रंग) के जरिए तथा विश्लेष्णात्मक (रासायनिक, भौतिक तथा जैविक) तकनीकियों के जरिए मापा जाता है।
3. निम्नांकित अहम रासायनिक, भौतिक तथा जैविक गुण हैं, जिनके जरिए व्यापक रूप से मृदा के स्वास्थ्य का निर्धारण किया जाता है।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 12:02
1. मृदा स्वास्थ्य में कमी को निम्नीकरण करते हैं तथा यह मुख्य रूप से उपरिक्त तीन घटकों के कारण होता है, जो हैं- भौतिक निम्नीकरण (अपरदन, संरचना में गिरावट- पैन निर्माण/ संघनन, मृदा कैपिंग/क्रस्ट निर्माण), रासायनिक निम्नीकरण (पोषक तत्त्वों में कमी/लवणता/सॉडिफिकेशन/अम्लीकरण/रासायनिक प्रदूषण) तथा जैविक निम्नीकरण (जैविक पदार्थों की हानि, पोषण चक्र विधि का बाधित होना।)।
2. वैश्विक स्तर पर पिछ्ले 50 सालों से होने काले मृदा निम्नीकरण को फसल भूमि का 13% माना गया है।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 12:01
1. वैज्ञानिक साहित्य में “मृदा गुणवत्ता” तथा “मृदा स्वास्थ्य” का काफी उपयोग होता है, जिसका अर्थ होता है बिना क्षीण हुए या पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना फ़सल की वृद्धि को बढ़ावा देना।
2. कुछ लोग मृदा स्वास्थ्य जैसे शब्द का इस्तेमाल इसलिए करते हैं कि यह जीवित, गतिशील अवस्था वाली मानी जाती है, जो रेत, गाद और कीचड़ के कणों की बजाए काफी पोषक रूप में कार्य करती है।
3. कुछ लोग मृदा गुणवत्ता शब्द का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि यह मृदा गुणों, जैसे भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणों की भिन्नता को मापने पर जोर डालता है।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 11:59
1. चावल के टिकाऊ उत्पादन, टिकाऊ कृषि प्रणालियां तथा साथ ही भूमि उपयोग के लिए मृदा के मूल्यांकन तथा प्रबंधन के लिए मृदा स्वास्थ्य को समझना जरूरी होता है, ताकि वर्तमान में इसका आदर्श उपयोग हो सके तथा भविष्य के उपयोग के लिए उसकी गुणवत्ता में गिरावट न आ सके।
2. कृषि में मृदा का महत्व है तथा इसे बनाए रखने का प्रयास किया जाना चाहिए। हालांकि हमने इसकी उत्पादकता की समस्या को काफी बढ़ा दिया है।
3. इस प्रकार यह समझना जरूरी हो जाता है कि मृदा स्रोतों के अल्प कालिक उपयोग तथा इसके दीर्घ कालिक टिकाऊपन के बीच एक संतुलन कायम हो।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 11:58
1.Si की आपूर्ति बढ़ने से (बाढ़ की स्थिति में), पत्तियों की Si मात्रा भी बढ़ जाती है, जिससे राइस ब्लास्ट जैसे कवक रोगों के प्रति संवेदनशीलता में भी गिरावट आती है।
2. हाइफी (उत्तकों का सिलिफिकेशन) के भेदन के ख़िलाफ एपिडर्मल कोशिकाओं में भौतिक अवरोध के निर्माण मुख्य विधि है, जिसके जरिए Si राइस ब्लास्ट जैसे रोगों के प्रति प्रतिरोध पैदा करता है। इसके अलावा Si पौधों में घुलनशील N की मात्रा को कम करता है, जिससे मिट्टी में चिटिनेज सक्रियता को प्रेरित होती है।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 11:56
1.B की आवश्यकता लिग्निन, सायनिडिंस (ल्युको साइनिडिन)/पॉलीफिनॉल के जैव-संश्लेषण के लिए होती है तथा इसके आदर्श प्रयोग से पौधों में कवक (मुर्झाना/रस्ट) तथा वायरल रोगों के ख़िलाफ प्रतिरोध बढ़ता है।
2.B के सही उपयोग से पौधों में कीटों के प्रति प्रतिरोध में भी इज़ाफा होता है।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 11:55
1.Cu को पौधों के रोगों से बचाव करने में अहम माना जाता है। उच्च सांद्रण में Mn की तरह Cu भी कवकों के लिए प्रत्यक्ष रूप से विषैला होता है।
2.Cu द्वारा बढ़े प्रतिरोध से उच्च पॉलीमर्स में खासकर प्रोटीन के उपापचय में फिजियोलॉजिकल प्रभाव में वृद्धि होती है। इस कार्य के लिए Cu का सांद्रता काफी कम होती है।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 11:54
1.Mn कवक के लिए प्रत्यक्ष रूप से विषैला होता है, साथ ही यह लिग्नीफिकेशन (भौतिक अवरोध) को बढ़ावा देता है और प्रकाश-संश्लेषण को बढ़ाता है, जिससे जड़ से रिसाव होता है और एंटीफंगल माइक्रोफ्लोरा को बढ़ावा मिलता है।
2. यह ऐसी सिंचित भूमि में जहां Mn की उपलब्धता काफी अधिक होती है, राइस ब्लास्ट (उच्च नाइट्रोजन तथा निम्न पोटेशियम की स्थिति में) को ब्राउन स्पॉट के प्रति प्रतिरोधी बनाता है।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 11:52
1.Zn पौधों में रोगाणुओं के ख़िलाफ प्रतिरोध बढ़ाता है।
2.Zn की आपूर्ति वाली मिट्टी में जड़ों में होने वाले रोगों की संभावना कम देखी जाती है। Zn घोल की थोड़ी मात्रा प्रभावी कवकनाशी के रूप में कार्य करती है।
3.Zn लवण से बीजों को उपचारित करने से भी कवक रोगों में कमी आती है। Zn की कमी प्रोटीन संश्लेषण को बाधित करती है।.
4. असंतुलित (उच्च N, तथा निम्न Zn) उर्वरक प्रयोग से उत्पन्न Zn की कमी एमीनो अम्ल के जमाव पैदा करता है।
5. ऐसी स्थिति चूषण कीटों तथा परपोषी कीटों के लिए हमले करने के लिए अनुकूल स्थिति होती है।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 11:50
1. कई अन्य सूक्ष्म तत्त्वों के साथ Fe की आवश्यकता फाइटोलैक्सिन के निर्माण में पड़ती है, जो पोषक पौधे की प्रतिरक्षा प्रणाली से जुड़ा होता है।
2. यह रोगाणुओं की उग्रता को भी प्रभावित करता है। Fe की कमी वाले वातावरण में उत्पन्न कोनिडिया को Fe की उपस्थिति वाले वातावरण की तुलना में अधिक आक्रामक रोगाणु के रूप में पाया गया है।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 11:49
1. पौधों में रोगों के विकास के लिहाज से Ca सबसे अधिक अहम और ज्ञात तत्त्व है।
2.Ca रोगों के प्रति प्रतिरोध पैदा कर सकता है तथा साथ ही यह रोगाणुओं की उग्रता को भी बढ़ा सकता है। पौधों के भागों में Ca पेक्टेट का जमाव कर कोशिका भित्तियों को मजबूती प्रदान करता है।
3. इसके अलावा पोषक पौधे में भेदन के दौरान Ca परपोषी कवक/बैक्टीरिया द्वारा निर्मित पेक्टोलाइटिक एंजाइम जैसे पॉलीगालाक्टोरिनेज को मध्य लेमेला में घुलने से रोकता है।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 11:48
1.N के विपरीत K का पौधों के रोग तथा पीड़कों पर मुख्यतः सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सामान्यतः K के अनुकूल प्रभाव कमी के दायरे तक सीमित होते हैं।
2. पर्याप्त K वाली मिट्टी में अतिरिक्त K की मात्रा राइस ब्लास्ट जैसे कुछ रोगों में वृद्धि करता है। K के प्रतिरोध समर्थन क्षमता के कई आयाम होते हैं।
3. एंजाइम की सक्रियता तथा उच्च आण्विक भार (सेलुलोज/लिग्निन/प्रोटीन) जैव-संश्लेषण मंो इसकी भूमिका के कारण फायटोपैथोजेंस में प्राइमरी बिल्डिंग ब्लॉक (एमीनो अम्ल/एमाइड्स/शर्करा) बाधित हो जाते हैं।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 11:47
1. यद्यपि उपज में वृद्धि लाने के लिहाज से P की आपूर्ति काफी अहम मानी जाती है, पर इसके लिए थोड़ी चिंताएं भी होती हैं।
2. यह पौधे की रोग/पीड़क प्रतिरोधकता पर प्रभाव डालता है।
3. उदाहरण के लिए राइस ब्लास्ट के लिए N का स्तर काफी अहमियत रखता है और P से इसका कोई संबंध नहीं होता। पर्याप्त P आपूर्ति से होने वाली निरंतर्न वृद्धि से पौधे में कुछ प्रकार की जड़ रोगों (पाइथियम) से छुटकारा पाने में मदद मिलती है।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 11:44
1. खनिज पोषण तत्त्वों के बीच पौधों के प्रतिरोध पर N का सबसे अधिक प्रभाव होता है।
2. पोषक पौधे का रोगों/पीड़कों के प्रति प्रतिरोध पर N की बढ़ती भूमिका रिसर्च खेतों तथा उद्यान फ़सलों के मैनेजर/किसानों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है।
3. अन्य प्रमुख पोषणों की तुलना में अत्यधिक N अनुप्रयोग (9.5: 3.0: 1.0 NPK) पौधे की संवेदनशीलता को बढ़ाता है। N की बढ़ती हुई आपूर्ति तथा पीड़कों/रोगों के प्रति प्रतिरोध के बीच सामान्यतः एक नकारात्मक संबंध देखा गया है।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 11:43
1. यद्यपि प्रतिरोध/सहनशीलता का नियंत्रण जीन के जरिए होता है, उनकी अभिव्यक्ति कई सारे पर्यावरणीय कारकों (पारिस्थितिक प्रतिरोध) के जरिए प्रभावित होती है।
2. पोषक पौधे की वृद्धि तथा आकार जो पौधे की पोषण स्थिति/पोषण गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं, ऐसे ही कुछ पर्यावरणीय कारक है। हालांकि इसका प्रबंधन संवेदनशील होता है।
3. नियम के अनुसार पौधे के प्रतिरोध पर खनिज पोषण का प्रभाव उच्च प्रतिरोधक तथा उच्च संवेदनशील किस्मों पर काफी कम होता है, पर यह प्रभाव मध्यम रूप से संवेदनशील/प्रतिरोधक किस्मों (फील्ड प्रतिरोध) पर काफी अधिक होता है।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 11:41
1.Balanced nutrition is the key to crop plants relative to plant health besides crop productivity. पौधों के स्वास्थ्य तथा उनकी उत्पादकता के लिए संतुलित पोषण काफी अहम होता है।
2. फ़सल की वृद्धि/उपज पर खनिज पोषण का प्रभाव को अच्छी तरह से अध्ययन किया गया है तथा पौधे की वृद्धि/उपापचय में सामान्यतः उनके संरचनात्मक/शरीर-क्रिया वैज्ञानिक/जैव-रसायनिक कार्य की व्याख्या की जाती है।
3. उर्वरकों के इस्तेमाल के जरिए कई बार किसान अधिक उपज पाने के लिए उनका असंतुलित उपयोग करते हैं, जो चावल जैसी फ़सल में रोगों/पीड़कों की अधिक संभावना उत्पन्न करता है।
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-26 11:40
1.NaCl (10 mM सांद्रण) के साथ बीजों में कड़ापन लाना।
2. जिप्सम @ 50% का अनुप्रयोग।
3. रोपण से पहले डैंचा (6.25 t/ha) का अनुप्रयोग।
4.0.5 ppm ब्रासिनोडोल का फोलियर स्प्रे फोटो-संश्लेषण गतिविधि को बढ़ाता है।
5. क्रिटिकल अवस्था में 2% DAP + 1% KCl (MOP) का फोलियर स्प्रे
6.100 ppm सेलिसाइलिक अम्ल का स्प्रे
7. समय से पूर्व फूल/कलियों/फलों को झड़ने से बचाने के लिए 40 ppm NAA का स्प्रे
8. उच्च स्थिति में नाइट्रोजन (25%) की अतिरिक्त ख़ुराक
9.N तथा K उर्वरकों का स्प्लिट अनुप्रयोग
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