Growth & Development
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Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-19 15:32
1. ट्रांसैक्ट अथवा क्वाड्रंट फेंककर अथवा मार्कर का इस्तेमाल कर नमूने तैयार करने की तकनीक को निर्धारित करें।
2. दूरी मापन के इस्तेमाल के वक्त क्वाड्रंट को अपने पैर के कुछ भाग पर रखना अच्छा माना जाता है।
3. हर बार कुछ और स्थापनों का प्रयोग भी करना चाहिए।
4. बिचड़े की संख्या को गिनकर दर्ग करें। सावधानीपूर्वक बिचड़े की गिनती करें ताकि टिलर्स अथवा घास की प्रजातियों की गिनती न हो।
5. प्रत्येक खेत में सभी क्वाड्रंट के लिए दर्ज की गई पौधों की संख्याओं को जोड़ें और कुल क्वाड्रांट क्षेत्रफल से विभाजित करें।
File Courtesy:
http://www.knowledgebank.irri.org/landprep/index.php/plant-establishment-mainmenu-51/planting-machines-mainmenu-56/31-plant-establishment-test
Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-19 14:27
1. पर्याप्त सिंचाई के समय, चावल की उत्पादक फसल पाने के लिए
जल आवश्यक है, खराब किस्म के जल से मिट्टी से जुड़ी समस्याएं आ सकती है और चावल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। मिट्टी से संबंधित कुछ समस्याएं जो चावल को प्रभावित करती है उनमें शामिल हैं लवणता (उच्च घुलणशील नमक), जिंक की कमी, फॉस्फोरस की कमी, और सोडियम की अधिक मात्रा जिसके कारण मिट्टी की स्थिति खराब होती है।
2. चावल उगाने वाले क्षेत्रों में लवणता की समस्या सामान्य होती है।
Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-19 14:24
1. सबसे उपयुक्त रोपण तकनीक स्थान, मिट्टी का प्रकार,
और फसल पारिस्थितिकी पर निर्भर करता है।
2. फसल का सीधा रोपण किया जाता है अथवा स्थानांतरण किया जाता है। इसी प्रकार, स्थानांतरित पौधों को हाथ से या मशीन द्वारा संस्थापित किया जा सकता है।
3. सीधे रूप से बोया हुआ फसल प्रतिरोपित फसल की तुलना में तेजी से वृद्धि करता है लेकिन उन्हें खर-पतवारों से अधिक प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है।
File Courtesy:
http://www.knowledgebank.irri.org/landprep/index.php/component/co ntent/article/19-plant-establishment/25-environmental-conditions-that-affect-seed-establishment
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http://www.knowledgebank.irri.org/landprep/index.php/component/content/article/19-plant-establishment/25environmental-conditions-that-affect-seed-establishment
Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-19 14:14
1. इसका अर्थ है फफूंदी, जीवाणु, विषाणु तथा कीट जैसे कटवार्म, विनाशकारी कीट के कारण बीज में बीमारियों की मौजूदगी।
2. बीज के स्वास्थ्य का परीक्षण आवश्यक है क्योंकि
a) बीज जनित इनॉक्युलम (inoculum) से खेत में क्रमिक रूप से बीमारियां फैल सकती हैं।
b) आयातित बीज से नई बीमारियों का जन्म हो सकता है।
बीज-जनित रोगों के जांच की विधियां:
1. प्रत्यक्ष जांच: निमैटोड गॉल्स, स्मट बॉल्स, बदरंग बीज, आवरण का मुरझाना (सूक्ष्मदर्शी द्वारा)।
2. इम्बाइब्ड बीज की जांच: अच्छे बीजों की पहचान के लिए उसे जल में डालते हैं, लक्षण पता चल जाता है।
Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-19 14:09
1. चावन के बीज को मिट्टी की सतह के करीब अवश्य रखना चाहिए।
2. जब सूखी चिकनी मिट्टी में बीज बोई जाए तो बीज को सतह से 10 से 15 मिमी नीचे डालनी चाहिए।
3. यदि बीज को इस गहराई में बोई जाए तो मिट्टी की सतह को समतल करने पर बहुत से अंकुर बाहर नही निकल पाते और निकलने का समय भी बढ़ जाता है।
4. जब गीले बीज की बुआई होती है, तब बीजों को मिट्टी के अन्दर नहीं डालनी चाहिए।
5.जहां संभव है जल डालें और बीज बुआई से पहले आंशिक रूप से जल को बाहर निकाल दें।
6. बीजे को मिट्टी से ढकने के बाद लगभग 48 घंटे प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
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http://www.knowledgebank.irri.org/landprep/index.php/component/content/article/19-plant-establishment/25-environmental-conditions-that-affect-seed-establishment
Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-19 14:05
1. अंकुरण की प्रक्रिया शुरू करने के लिए, बीज अपने आसपास से
कुछ निश्चित मात्रा में नमी का अवशोषण करता है।
2. सूखी बीज परत में अवशोषण तब आरंभ होता है जब इसे मिट्टी में बिखेर दिया जाता है अथवा जल में आंशिक रूप से डुबोया जाता है।
3. बीजे का मिट्टी अथवा मिट्टी के ढेले से अच्छी तरह संपर्क में आने के लिए, बीज का आकार में छोटा होना आवश्यक होता है।
4. रोपण से पहले बीज को भिंगोने (जल में देर तक रखना) से प्राय: पौध निकालने की दर में वृद्धि होती है।
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http://www.knowledgebank.irri.org/landprep/index.php/component/co ntent/article/19-plant-establishment/25-environmental-conditions-that-affect-seed-establishment
Contributed by rkmp.drr on Mon, 2011-09-19 14:01
बिचड़े के रूप में बढ़ने के लिए बीज अनेक परिस्थितियों से गुजरता है:
1. वातावरण से नमी का अवशोषण करता है।
2. मिट्टी की गीली परत में जड़ तंत्र को स्थापित करता है।
3. इसकी की कली और पत्ते मिट्टी की सतह से बाहर निकल आते हैं।
4. बहुत सी पर्यावरणीय दशाएं बिचड़े की क्षमता को प्रभावित करती हैं।
5. बीज और जल का संपर्क होता है।
6. जिस गहराई पर बीज रखा जाता है और कितनी संख्या में कीट मौजूद है।
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http://www.knowledgebank.irri.org/landprep/index.php/component/content/article/19-plant-establishment/25-environmental-conditions-that-affect-seed-establishment
Contributed by rkmp.drr on Thu, 2011-09-15 15:21
1. टाइन्ड प्लाउ सबसे अधिक बहुपयोगी प्राथमिक जुताई उपकरण है
क्योंकि उनका इस्तेमाल द्वितीयक जुताई के लिए किया जा सकता है और साथ ही यह सीड ड्रिल के रूप में भी प्रयुक्त होता है।
2. इसका इस्तेमाल केवल सूखी स्थिति में ही किया जा सकता है क्योंकि यह मिट्टी को पलटने की बजाए उसे चीरता है। यह खरपतवार को नोंच कर उन्हें सतह पर लाता है।
3. टाइन में विभिन्न साइज के फाल या स्वीप लगाए जा सकते हैं। स्वीप की चौड़ाई 50 मिमि से 500मिमि तक हो सकती है।
Contributed by rkmp.drr on Wed, 2011-09-14 17:12
1. ऊर्वरक की टॉप ड्रेसिंग (ऐच्छिक): यदि तापमान और जल पर्याप्त है लेकिन बिचड़े पीले हों तो इससे नाइट्रोजन की कमी का पता चलता है।
2. बिचड़े पर 0.5% यूरिया (1.5 किग्रा यूरिया को 300 ली पानी में घोलकर) का छिड़काव करें।
File Courtesy:
http://www.knowledgebank.irri.org/factsheetsPDFs/Crop_Establishment/fs_modMatNurs.pdf
Contributed by rkmp.drr on Wed, 2011-09-14 17:11
1. बुआई के 5 दिन बाद नर्सरी का आवरण हटा दें और नर्सरी को जल से भर दें। मैट के चारों ओर 1 सेमी पानी बनाए रखें।
2. फिर, रोपण के लिए बिचड़े के मैट को हटाने से 2 दिन पूर्व पानी निकाल दें। यदि 7 दिन बाद बिचड़े का रंग पीला पड़ जाए तो इसका अर्थ है कि नाइट्रोजन की कमी हो रही है।
3. बिचड़ॆ पर 0.5% यूरिया के घोल का छिड़काव कर इस कमी की पूर्ति करें। सामान्यतः 1.5 किग्रा यूरिया को 300 ली. पानी में घोलकर 100 वर्ग मी के क्षेत्रफल में छिड़कें।
File Courtesy:
http://www.knowledgebank.irri.org/ericeproduction/II.5_Nursery_systems.htm
Contributed by rkmp.drr on Wed, 2011-09-14 17:10
1. 5 दिनों तक नर्सरी में रोज दो बार पानी का छिड़काव करें और इसे केले के पत्ते या चावल की भूसी से ढक दें ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे।
2. ध्यान रखें कि 5 दिनों तक नर्सरी को तेज वर्षा से बचाएं।
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http://www.knowledgebank.irri.org/ericeproduction/II.5_Nursery_systems.htm
Contributed by rkmp.drr on Wed, 2011-09-14 17:09
1. पूर्व-अंकुरित बीजों की एकसमान रूप से बुआई करें। मिट्टी का छिड़काव करें और हल्के से उन्हें 2-3 सेमी मिट्टी में दबाएं और तब उनपर तुरंत उनपर पानी छिड़कें।
2. लकड़ी के फ्रेम को हटा दें और फिर दूसरी जगह मिट्टी के मिश्रण को दुबारा बिछाएं और बीज बोएं। इस तरह संपूर्ण नर्सरी क्षेत्र की बुआई संपन्न करें।
3. यदि लकड़ी का फ्रेम न हो तो केले के स्तंभ का प्रयोग करें। नर्सरी के चारों ओर केले के स्तंभ और लकड़ी की छड़ियों की मदद से सामान्य रूप से एक घेरा तैयार करें।
4. अंत में, नर्सरी को केले के पत्ते या प्लास्टिक शीट से ढक दें।
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http://www.knowledgebank.irri.org/ericeproduction/II.5_Nursery_systems.htm
Contributed by rkmp.drr on Wed, 2011-09-14 17:08
1. मिट्टी का मिश्रण तैयार करें। 100 वर्ग मी नर्सरी क्षेत्र के लिए 4 घन मी मिट्टी की जरूरत होती है।
2. 7 भाग मिट्टी को 2 भाग अच्छी तरह सड़े हुए मुर्गी-खाद एवं 1 भाग चावल की ताजी या जली हुई भूसी के साथ मिलाएं।
3. एक हे. खेत की रोपाई के लिए 100 वर्ग मी नर्सरी क्षेत्र तैयार करें। मुख्य खेत या घर के पिछवाड़े कोई समतल जगह चुनें।
4. बीज शैय्या को समतल करें और इसके ऊपर केले के पत्ते या प्लास्टिक शीट बिछाएं ताकि बिचड़े की जड़ें जमीन तक न पहुंचें।
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http://www.knowledgebank.irri.org/ericeproduction/II.5_Nursery_systems.htm
Contributed by rkmp.drr on Wed, 2011-09-14 17:06
1. अच्छे किस्म के बीजों का इस्तेमाल करें। एक हे. खेत के लिए 20सेमी की दूरी पर एक साथ 1-2 बिचड़े रोपने के लिए............
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Contributed by rkmp.drr on Wed, 2011-09-14 17:05
1. पूर्व-अंकुरित धान के बीज। बीजों को 24 घंटे पानी में भिंगोएं(कुछ किस्मों को अंकुरित होन में अधिक समय लगता है)।
2. 24 घंटे के बाद बीजों को पानी से निकाल लें और अगले 24 घंटॆ तक उन्हें ढक कर रखें।
3. इसके बाद, बीजों में अंकुर निकल आता है और आरंभिक जड़ों की लंबाई 2-3 मिमि तक होती है।
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http://www.knowledgebank.irri.org/ericeproduction/II.5_Nursery_systems.htm
Contributed by rkmp.drr on Wed, 2011-09-14 17:03
1. 80% की न्यूनतम अंकुरण दर वाले 12 से 25 किग्रा. बीजों की आवश्यकता होती है।
2. अच्छे बीजों का इस्तेमाल करना महत्वपूर्ण होता है क्योंकि उनकी बीज दर कम होती है, उनका अंकुरण एक समान होता है, रिप्लांटिंग कम होता है, कम खरपतवार उगते हैं, स्वस्थ बिचड़े उगते हैं और उपज में 5-20% की वृद्धि होती है।
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http://www.knowledgebank.irri.org/ericeproduction/II.5_Nursery_systems.htm
Contributed by rkmp.drr on Wed, 2011-09-14 17:03
1. इस विधि से बिचड़े को किसी कठोर सतह पर मिट्टी के मिश्रण की
परत बिछाकर तैयार किया जाता है।
2. इसमें कम जमीन और कम खाद-पानी की आवश्यकता होती है। इसमें नर्सरी की लागत 50% तक कम आती है।
3. 15-20 दिनों के बाद बिड़वा चार पत्ते की अवस्था को प्राप्त कर लेता है जिस कारण इसकी वृद्धि तेज होती है और खेत में इसकी रोपाई जल्द की जा सकती है।
4. पारंपरिक गीली शैय्या वाली नर्सरी के 25-35 दिन की तुलना में इसमें बिचड़े के तैयार होने में बहुत कम समय लगता है।
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http://www.knowledgebank.irri.org/ericeproduction/II.5_Nursery_systems.htm
Contributed by rkmp.drr on Wed, 2011-09-14 17:01
1. इस विधि से बिचड़े तेजी से तैयार होते हैं और चाहे कोई भी किस्म हो बुआई के 9-14 दिनों के अन्दर रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं।
Contributed by rkmp.drr on Wed, 2011-09-14 17:01
1. प्रत्येक 100वर्ग मी बीज शैय्या के लिए लगभग 0.5-1.0 किग्रा नाइट्रोजन, 0.5 किग्रा फॉस्फोरस और 0.5 किग्रा पोटाश का व्यवहार करना चाहिए।
2. रासायनिक ऊर्वरक के अतिरिक्त, शैय्या की तैयारी से पूर्व 250किग्रा./100वर्ग मी की दर से FYM का प्रयोग करना चाहिए।
Contributed by rkmp.drr on Wed, 2011-09-14 17:00
1. अंकुरित बीजों पर रोज केन की मदद से पानी का फुहार डालें और 3-6 दिनों तक हाथ से या लकड़ी के पटरे से दिन में दो बार हल्के-हल्के दबाएं।
2. इस क्रिया से बिड़वे की जड़ें सतह पर पानी के संपर्क में बनी रहती हैं और सूखती नहीं।
3. इस अवधि के बाद बीज शैय्या की सिंचाई 1-2 सेमी पानी की गहराई के साथ लगातार करते रहनी चाहिए।